थांरौ साथो घणो सुहावै सा…

17.4.11

भाषा राजस्थान री… राजस्थानी !

पीड़ पच्चीसी
रजथानी रै राज में , गुणियां रौ औ मोल !
हंस डुसड़का भर मरै , कागा करै किलोळ !!
 रजथानी रै खेत नैं , चरै बजारू सांड !
खेत धणी पच पच मरै , मौज करै सठ भांड !!
 कांसो किण रौ कुण भखै ; ज़बर मची रे लूंट !
चूंग रहया रजथान री गाय ; सांडिया ऊंठ !!
 महल किणी रो घुस गया कित सूं आ'य लठैत ?
घर आळां पर हर घड़ी फटकारीजै बैंत !!
 शरण जकां नैं दी ; हुया बै छाती असवार !
हक़ मांगां आपां जिंयां भिखमंगा लाचार !?
 रजथानी गढ आंगणां , रै'गी कैड़ी थोथ ?
राजा परजा सूरमां थकां मांद क्यूं जोत !?
 भणिया गुणिया मोकळा बेटां री है भीड़ !
सिमरथ ऐड़ो एक नीं ? मेटै मा री पीड़ !!
 पूत करोड़ूं सूरमा राजा गुणी कुबेर !
रजथानी खातर किंयां ओज्यूं सून अंधेर ?!
 माता नऊ करोड़ री रो-रो ' करै पुकार !
निवड़्या पूत कपूत का भुजां हुई मुड़दार ?!
 समदर उफ़णै काळजै , सींव तोड़ियां काळ !
सुरसत रा बेटां ! करो मा री अबै संभाळ !!
 निज भाषामाभोम रौ जका नीं करै माण !
उण कापुरुषां रौ जलम दुरभागां री खाण !!
 जायोड़ा जाणै नहीं जे जननी री झाळ !
उण घर रौ रैवै नहीं रामैयो रिछपाळ !!
 निज भाषा रौ गीरबो करतां क्यां री लाज ?
मातभोम भाषा 'र मा सिरजै सुघड़ समाज !!
 मिसरी सूं मीठी जकीराजस्थानी नांव !
व्हाला भायांल्यो अबै निज भाषा री छांव !!
 माता नैं मत त्यागजो , त्याग दईजो प्राण !
मा आगै सब धू्ड़ हैधन जोबन अर माण !! 
 अरे सपूतां ! सीखल्यो माता रौ सन्मान !
मा नैं पूज्यांपूजसी थांनैं जगत जहान !!
 नव निध मा रै नांव में , राखीजो विशवास !
मत बणजो माता थकां और किणी रा दास !!
 माता रै चरणां धरो , बेटां ! हस-हस शीश !
खूटै सगळा धनअखी माता री आशीष !!
 मा मूंढै सूं कद करै आवभगत री मांग ?
आदर तो मन सूं हुवै , बाकी ढोंग 'र स्वांग !!
 करम वचन मन सूं करो माता रा जस-गान !
रजथानी अपणो धरम , रजथानी ईमान !!
 गूंजै कसबां तालुकां ढाण्यां शहर 'र गांव !
भाषा राजस्थान री  राजस्थानी  नांव !!
 वाणी राजस्थान री जिण री कोनी होड !
होठ उचारै ; काळजां मोद हरख अर कोड !!
 उपजै हिवड़ै हेत ; थे बोलो तो इक बार !
राजस्थानी ऊचरयां ' बरसै इमरत धार !!
 इमरत रौ समदर भर्'यो , पीवो भर-भर' बूक !
रजथानी है प्रीत री औषध असल अचूक !!
 पैलां मा नैं मा गिणां आपां हुय ' दाठीक !
मरुवाणी नैं मानसी औ जग जेज इतीक !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
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॥जै रामजी री सा॥